Kavad Yatra niyam: कावड़ यात्रा करते वक्त भुलकर भी ना करें ये काम! वरना होगा बुरा हाल
कांवड़ यात्रा शिव भक्तों की तीर्थ यात्रा है। कांवड़ लाने वाले भक्तों को कांवड़िए कहते हैं। यह एक कठिन यात्रा है, क्योंकि पूरी यात्रा पैदल ही की जाती है। हर साल लाखों कांवड़िए हरिद्वार से पवित्र गंगा जल लेकर आते हैं और सावन शिवरात्रि पर अपने क्षेत्र के शिव मंदिरों में शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।
इस दिन से हो रही है शुरुआत
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हिंदू मान्यताओं के अनुसार सावन माह की शुरुआत के साथ ही कांवड़ यात्रा भी शुरू हो जाती है। ऐसे में इस साल सावन माह 22 जुलाई 2024, सोमवार से शुरू हो रहा है। ऐसे में इसी दिन से कांवड़ यात्रा भी शुरू होगी, जिसका समापन 02 अगस्त 2024 को सावन शिवरात्रि पर होगा।
ऐसे होती है कांवड़ यात्रा
सावन माह शुरू होते ही श्रद्धालु अपने-अपने स्थानों से उत्तराखंड के हरिद्वार, गौमुख और गंगोत्री आदि स्थानों से गंगा नदी का पवित्र जल लाने के लिए निकल पड़ते हैं। इसके बाद शिवभक्त गंगा तट से कलश में गंगा जल भरकर उसे अपनी कांवड़ में बांधकर कंधों पर लटका लेते हैं। इसके बाद वे इसे अपने क्षेत्र के शिव मंदिर में लाते हैं और इस गंगा जल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। शास्त्रों में माना जाता है कि भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी।
कांवड़ यात्रा के नियम
यात्रा के दौरान भक्तों को केवल सात्विक भोजन ही करना चाहिए। साथ ही इस दौरान किसी भी तरह के नशे, मांस-मदिरा या तामसिक भोजन आदि से दूर रहना चाहिए। इस बात का भी विशेष ध्यान रखा जाता है कि यात्रा के दौरान कांवड़ को जमीन पर न रखा जाए। ऐसा होने पर कांवड़ यात्रा अधूरी मानी जाती है। ऐसी स्थिति में कांवड़िए को दोबारा कांवड़ में पवित्र जल भरना पड़ता है।
इन बातों का भी रखें ध्यान
कांवड़ यात्रा पूरी तरह पैदल ही की जाती है, इसके लिए किसी वाहन का इस्तेमाल नहीं किया जाता। कांवड़ को हमेशा स्नान करने के बाद ही छुआ जाता है। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि यात्रा के दौरान कांवड़िया किसी चमड़े को न छुए और न ही कांवड़ को किसी के ऊपर ढोया जाए। साथ ही भोलेनाथ की कृपा के लिए कांवड़ यात्रा के दौरान हर समय भगवान शिव का नाम लेते रहना चाहिए।